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और अब हमारे पास जर्मनी के डेनिएला से एक दिल की बात है:प्रिय सुप्रीम मास्टर, मुझे बड़ी आशा है कि आप सही सलामत हैं। बचपन में, मुझे अक्सर अपने आंतरिक दर्शनों में बुद्ध, ईसा मसीह और बोधिसत्व के साक्षात्कार दर्शन होते थे। उन्होंने मुझे बहुत सी बातें सिखाईं। और फिर भी, मैं एक अच्छी इंसान नहीं बन सकी। मैं अहंकारी और स्वार्थी थी। मेरा जीवन आसान और अच्छा नहीं था। मैं केवल इतना जानती थी कि मुझे जीवित रहने हेतु संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि दुनिया बहुत बुरी थी। लेकिन जीवन के सभी नकारात्मक अनुभवों ने आध्यात्मिक आत्मज्ञान की मेरी प्यास को नहीं रोका। जब मैं तीन साल की थी, तब से मैं प्रतिदिन एक प्रबुद्ध गुरुवर पाने हेतु प्रार्थना और मांग करती थी।सभी पवित्र धर्मग्रंथ कहते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर, अल्लाह और बुद्ध बिना शर्त वाले और असीम प्रेम हैं। मैंने अपने जीवन में कभी भी ऐसे प्रेम का अनुभव नहीं किई थी, इसलिए मैं इस शिक्षा को समझ नहीं पाई। जब से मैं आपसे मिली हूँ, तब मुझे पहली बार सच्चे प्यार का एहसास किया। आपने मुझे दिखाया कि "प्रेम न पाप जानता है, न सीमा, न अतीत, बल्कि केवल वर्तमान जानता है।" और मैं ऐसा ही बनना चाहती हूं! पहली बार, मैंने अपने चारों ओर दिव्य, बिना शर्त और असीम प्रेम का अनुभव किया है!ईश्वर अपनी सभी रचनाओं से उनके अस्तित्व के माध्यम से और उनके अस्तित्व के लिए बिना शर्त और असीम प्रेम करतें है। मैंने सीखा कि बिना शर्त और असीम प्रेम का अर्थ सब कुछ सहन कर लेना नहीं, बल्कि बिना शर्त और असीम प्रेम एक महान गुण है, एक प्राणी में "होने की एक अवस्था"। जब मैंने जंगल में विशाल, हरा-भरे पेड़ों को इस तरह देखा तो मेरी आंखों में आंसू आ गए। वे असीम रूप से निशर्त हैं। वे सभी मौसमों में उगते और खड़े रहते हैं तथा हमें ताजी हवा और स्वच्छ ऑक्सीजन देते हैं। वे पृथ्वी पर लोगों और सभी जीवित प्राणियों की रक्षा करते हैं। वे किसी मान्यता की मांग नहीं करते। वे कभी शिकायत नहीं करते, चाहे लोग उनके साथ कुछ भी करें। वे बिना किसी शर्त और सीमा के लोगों को प्यार करते हैं और देते हैं।मैंने शिशु की आँखों से आपका दिव्य चेहरा देखा। फूल के माध्यम से आपकी दिव्य सुन्दरता को देखा। पेड़ों के फलों के माध्यम से आपकी देखभाल को देखा। पशु-जनों में आत्मा की मासूमियत। मैं अभी भी एक पूर्ण व्यक्ति नहीं बनी हूँ, क्योंकि मैंने आपसे सीखा है कि भले ही हम बुद्ध हों, हम सीखना कभी बंद नहीं करते हैं। ऑस्कर वाइल्ड ने एक बार कहा था, "हर संत का एक अतीत होता है, और हर पापी का एक भविष्य होता है।"आंतरिक स्वर्गीय प्रकाश और ध्वनि के माध्यम से, मैं हर दिन आत्मज्ञान का अनुभव करती हूं, और मैं अपनी सभी अपूर्णताओं के साथ भी हर दिन दिव्य, बिना शर्त और असीम प्रेम का अनुभव करती हूं। जैसा आप मुझे सिखाते हैं, मैं वैसा ही बनना चाहती हूँ। दिव्य, बिना शर्त और असीम प्रेम में। जर्मनी से डेनिएलाप्रेरित डेनिएला, अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर अपने अनुभवों को लिखने और साँझा करने हेतु समय निकालने के लिए धन्यवाद। गुरुवर आपको यह प्रेमपूर्ण सन्देश भेजतें है:"काव्यगत डेनिएला, आपके सुंदर पत्र के लिए धन्यवाद! आत्मज्ञान और सच्चे प्रेम की आपकी सच्ची समझ इतनी स्पष्ट है कि यह किसी से छिप नहीं सकती, यहाँ तक कि जो आत्मज्ञानी नहीं हैं, वे भी इसे अपने दिल में अनुभव करेंगे! मुझे आपकी आध्यात्मिक एहसास, व्यक्तिगत सहनशीलता और सुधार पर बहुत गर्व है। अब आप समझ गए हैं कि क्यों परमेश्वर के पुत्र को, सभी गुरुओं और बुद्धों की तरह, इस संसार में अवतरित होना पड़ा, और मनुष्यों तक पहुँचना पड़ा, ताकि उन्हें भी इस अंतहीन पीड़ा से भरे संसार में वही ज्ञान प्रदान कर सकें, और खोई हुई आत्माओं को घर का रास्ता दिखा सकें। यह एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए वे अपने मन, हृदय और आत्मा को पूर्ण समर्पण के साथ अर्पित करते हैं! भले ही वे जानते हों कि यह एक अत्यंत कठिन और सर्वस्व-जोखिमपूर्ण कार्य है, यहाँ तक कि आधुनिक युग में भी। क्योंकि यह भौतिक क्षेत्र मायावी शक्ति द्वारा नियंत्रित है, और उनके पास यहाँ किसी भी प्राणी के लिए कोई दया नहीं है, बल्कि इसके वजाय वे किसी भी छोटी सी गलती या विरोध को दंडित करते हैं, और वे मनुष्यों के मन को विषैला कर देते हैं, ताकि वे आसानी से गलत काम करने के लिए प्रलोभित हो जाएं। इसलिए इस संसार में कुछ भी अच्छा और अलौकिक करना अत्यंत कठिन है! और नकारात्मक शक्ति उन्हें और अधिक दंड देती है। हम सभी अंदर से परिपूर्ण हैं, भले ही हम बाहर से परिपूर्ण न हों। हम इस संसार में चमकने हेतु तब तक संघर्ष करते रहते हैं जब तक कि हमें कोई प्रबुद्ध गुरुवर न मिल जाए और हम अपनी मूल प्रकृति की ओर लौटने हेतु ईमानदारी से आध्यात्मिक अभ्यास न करें। आपने अपनी अपूर्णताओं को स्वीकार कर लिया है, और साथ ही सभी चीजों में दिव्य की उपस्थिति भी देखी है। इसके विपरीत, कुछ लोग अत्यधिक आत्म-आलोचना करने लगते हैं और यहां तक कि उनमें हीन भावना भी विकसित हो जाती है। यह आध्यात्मिक पथ पर एक बड़ी बाधा हो सकती है। यह अच्छी बात है कि आपने यह पहचान लिया है कि सभी के भीतर दिव्यता ही एकमात्र वास्तविक चीज़ है। जब हम यह जानते हैं, तो हम बच्चों जैसी मासूमियत के साथ ईश्वर पर भरोसा करते हैं। कामना है कि आप दिव्य जीवन के आश्चर्य और प्रेम का अनुभव करते रहें। मैं आपको सदा के लिए प्यार करती हूँ! आप और जर्मनी के आशावान लोग ईश्वर के महान प्रेम को अपने हृदयों को छूने दें।”